धर्ती,पहाड़ गौं, खाळ-धार- सौं सिंगार की हंसुळि -गढरत्न नरेंद्र सिंह नेगी
पौडी गौं मा 12 अगस्त 1949
पिता उमराव सिंह अर माँ समुद्रा देवी का घर मा उत्तराखंड कु एक अनमोल रतन ह्वे, जैन गढवाली भाषा साहित्य अर संस्कृति तै नयु आयाम दीनी।
जैका गीत अस्सी का दशक बटि आज इक्कीसवीं शताब्दीअर भोल जुगजुग तलक भी समाज मा हिट अर फिट दगडि रळया-मिळया रौला।
आज नै पीढ़ी अगर गढभाषा की तरफ द्येखणी- पढणी च, अर पसंद कनी च त, येमा गढरत्न नरेंद्र सिंह नेगी जी का गीत संगीत कविता अर साहित्य कु अमुल्य योगदान च।
1974 को जब देरादूण मा पिताजी की आंखों कु आप्रेशन छो त रात मा हास्पिटल का बरामदा मा नींद की झपकी का दगडि मन मा यि भाव ऐ गैन—-
” सैरा बसग्याळ बणू मा,
रूड कुटण मा,
ह्यूंद पिसण मा,
मेरा सदानि! यनि दिन रैना।”
अश्लीलता फूहडता, अर नकारात्मकता से दूर जनजन का गीत सुदि थोडि नि बण्दा।
रस, छंद, अलंकरण से सजाईं हर रचना आम गढमानस का मन मस्तिष्क पर यन छपी च कि दुख संवेदना अर पलायन की मार मा यखुलि डैरा मा रंदा मनख्यूं कि बात ह्वो या दूर परदेस- विदेश अर बार्डरु मा डयूटी करदा फौजी भै, हर उत्तराखंडी मुबैल मा गढमाटी का ये सपूत कु गीत संगीत हमुतै अपडा गौं-मुल्क, अर थाति से जोड़ी दैंदु।
नेगी जी का गीतों मा जख डाळि बोटळु दगडि संवेदना छिन-
” मुलमुल क्येकु हैंसणि छै तू, हे कुलैं कि डाळी”
तखि पलायन कि पिड़ा- “ना दौड़ ना दौड़”
“हे जी सार्यूं मा फूली ग्ये होलि”
महंगै पर- “अबि भनाई सौ कु नोट अबि ह्वेग्यईं सुट”
भ्रष्टाचार राजनीति पर भी कलम चलाईं च-
“अब कथिग्या खैल्यूं रे”
श्रृंगार रस की अद्भुत रचना देखा-
“टक्क ज्वोन पर नि गै, मुख आगास तक नि कै,
आज गैंणा गीणि ग्यूं मैं, तुमारि माया मा”
सुपिन्या आख्यूं मा नि छा, रात निंद नि औंदि छे,
ब्याळि फसोरपट्ट स्ययूं रौ, तुमारि माया मा”
एक तरफ बाळा की लोरी च त हैकि तरफ दाना मनख्यूं पिडा –
“बाळा स्ये जांदि, त्वेकु ते द्यूळू दूध अर भात, बाळा स्ये जांदि “
दाना मनख्यूं खैरि देखा-
“अब यूं घरु बल कैन नी बुढ्येण,तुम खुद्येंणा छिन त खुदी ल्या”
हमारा पहाड़ का ये साहित्यकार गीतकार की रचनौं तै अगर बंगाली भाषा का रचनाकार रविंद्रनाथ टैगोर, अर अवधी भाषा मा लिखदा महाकवि तुलसीदास जन लिख्वारों मा शुमार करि द्यौन त अतिशंयोक्ति नि होलि।
आज गढवाली भाषा तै संविधान की आंठवी अनुसूची मा शामिल कनौ गढभाषा का बड़ा बड़ा यज्ञ, महायज्ञ सम्मेलन आयोजन उर्येणा छिन जौंमा गढरत्न शारिरिक अस्वस्थता का बाद भी अपणु आशीर्वाद अर छैल बरखौणा छिन।
गढरत्न नरेंद्रसिंह नेगी जी का गीत बच्चा बड़ा दाना स्यांणा जनानि बैक हर कैका मुख बटि छडगदा अर भला लगदा।
जु गीत अस्सी का दशक मा लिख्यूं च, गायूं च सु आज भी खूब प्रासंगिक च। सदाबहार गीत कविता सुर कंफ का सल्लि यन मनखि तै, कै नोबेल, पदम पुरस्कार भी कम छिन।
भाषा आंदोलनों की जातरा मा आज नै पीढ़ी अर परदेसी भै बंद तै पहाड़ तक जोडण मा यूँ गीतों तै बिसर्ये नि सकदा।
कलश साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था रूद्रप्रयाग का लगभग हरेक कार्यक्रम मा गढरत्न कु आशीर्वाद मिलणू ही रैंदु जैका परिणाम से आज गढवाली भाषा मा लिख्वारों की घिमसाण पैदा हौणी च।
गढसंस्कृति की तरफ काम कर्दा अधिवक्ता आदरणीय संजय दरमोडा जी नेगी जी का छत्रछैल मा कै गढभाषा का कार्यक्रम अपडा दमखम पर ही उर्योणा छिन ।
सांस्कृतिक नगरी पौडी बटि भगवान भुम्याळ कंडोलिया कु आशीर्वाद लिकरी गढरत्न नरेंद्र सिंह नेगी जी देश विदेश तक हमारी संस्कृति साहित्य अर भाषा तै फैलास द्यौणा छिन।
गांण्यू कि गंगा, खुंचकण्डि, जन साहित्य हमुतै एक नई ऊर्जा द्यैदा।
गढरत्न, गढगौरव, हिमगिरि गौरव, गढकला शिरोमणि, गढशिरोमणि जन कै अलंकारो से सुशोभित श्रद्धेय नरेंद्र सिंह नेगी जी हमारा पहाड़ का शख्स ही न शख्सियत छिन।
आपका शुभ मंगलमय आरोग्य समृद्ध स्वस्थ जीवन की मंगल कामना का दगडि
अश्विनी गौड दानकोट अगस्त्यमुनि










