बेटी किले ना? जन विषय पर देखा लक्ष्मी कन लिखणीं च। कविता कैंतुरा दगडि लक्ष्मी भी पालाकुराली बटि चार सालों बै, बरौबर कलम चलौणी च अर मेरी गढभाषा कु पैलु प्रयोग भी यूँ द्वी बालिकौं दगडि ही अग्वडि बढी। देखा अर स्नेह बरखे द्या ईं बालिका पर—— –बेटी किले ना?–
ये समाज ते, हम समझि नि सक्या! माँ भी सबुते चैंणी, ब्वारी भी खोज ह्वोणी पर बेटी किले ना ?
माँ बटि हि, जन्मी बेटी, बेटी ही त ब्वारि बणदि, स्ये बेटी केकि बैंण , माँ, काकी केकि ताई बणदि। मां कु लाड, बैण्यू प्यार, सबि चांदा! पर बेटी किले ना?
बेटी बटिन बणि संसार, बेटी बटि रिश्ता प्यार, बेटी बाबाजी की शान च, बेटी सबुकू अभिमान च।
ये समाज ते, हम समझि नि सक्या! माँ भी सबुते चैंणी, ब्वारी भी खोज ह्वोणी पर बेटी किले ना ?
———-@लक्ष्मी राणा, छात्रा पालाकुराली ,रुद्रप्रयाग










